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हमसफ़र 15 पॉर्ट सीरीज पॉर्ट - 6




हमसफ़र (भाग - 6)



  वीणा के पापा और मां पंडित जी के साथ पूजा घर में चले गए और पूजा प्रारंभ करने की तैयारियां करने लगे।  वीणा ने एक बार फिर से घर व्यवस्थित कर दिया और रसोई में जाकर अपनी बहनों के साथ मिलकर कुँवारी कन्या के लिए सात्विक भोजन बनाने लगी। तभी वीरेन आया बोलते  - 



   "दीदी-दीदी देखो वे लोग आ गये हैं। पापा और माँ तो पूजा में हैं। आओ उनका स्वागत करो। ये मिठाई रखो"। कह कर उसने मिठाई को छोटी बहन को दे दिया और वीणा को लिए बाहर आया। 

  वीणा  -  " बिना उन्हें लिये अंदर क्यों आ गया तू। उन्हें लेकर न अंदर आता"।




   वीरेन   -  "दीदी मैं अंदर जब आया था तभी मैंने गाड़ी की आवाज सुनी, देखा तो गाड़ी रुक रही थी तो मैं तुम्हें बोलने लगा बस मैं भी जा रहा हूं स्वागत के लिए।"




  दोनों आए दरवाजे तक। वीरेन ने आगे बढ़कर सुमित को प्रणाम कर उन सभी का स्वागत किया। सुमित ने अपने पूरे परिवार का परिचय करवाया। 




  सुमित  -  "वीरेन यह मेरी माता जी पिताजी यह मेरे भैया यह मेरी भाभी है और यह है मेरी प्यारी सी भतीजी पीहू"।




  वीरेन ने सभी बड़ों को प्रणाम किया अब तक वीणा भी पास आ चुकी थी और उसने भी सभी को प्रणाम किया और सब को लेकर ड्राइंग रूम में आयी तथा बैठाया। तब तक उसकी छोटी बहन पानी लेकर आ गई सभी को पानी दिया। वह बोली –




   "मैं चाय लेकर आ रही हूं। पहले चाय पी कर फिर पूजा में जाएंगे तो वीरेन की मां ने कहा नहीं बेटा हम लोग थोड़ा पैर धोकर के पहले पूजा करेंगे। जूठे   मुंह से पूजा कैसे करेंगे। इसलिए चाय मत बनाओ। तुम्हारे मां पापा नहीं दिख रहे, लगता पूजा शुरू हो गई है"।

   वीणा  -  "जी अभी थोड़ी देर पहले शुरु हुई।"




     इन लोगों को भी फ्रेश होने के बाद ले जाकर पूजा रूम में बैठा दिया। सब ने पूजा की फिर हवन हुआ। हवन के बाद कन्या पूजन करना था। वीरेन कुमारी पूजा के लिए कन्याओं को ले आया था। वीणा और उसकी बहनों ने मिलकर लड़कियों का पाँव धोकर उनका श्रृंगार किया। उनकी पूजा की। उनके माता-पिता ने भी सारी कन्याओं की पूजा की। सुमित की भतीजी पीहू भी कुंवारी कन्या के रूप में पूजित होकर भोजन के लिए बैठी थी और वह इस ग्रुप में बैठकर बहुत खुश थी। सुमित उससे मजाक कर रहा था –

  "आज तो तुम भी दुर्गा मां हो पीहू।"



  सभी कन्याओं को दक्षिणा देकर विदा करने के बाद वीणा और सुमित के परिवार ने मिलजुल कर एक साथ खाना खाया खुशनुमा माहौल में।



सुमित की माताजी वीणा की माँ से उनकी बेटियों की प्रशंसा करते नहीं थक रही थीं। सुमित की भाभी वीणा के साथ सहायता के लिए गई लेकिन उसने ने मुस्कुराते हुए कहा –




   "अरे आप हमारी अतिथि हैं भाभी आप तो सिर्फ देखते रहिए।"

  भाभी  – "अभी कितना काम है, पूजा का समय है और आप लोग भी व्रत में हो। और आज तो काफी काम हो जाता है तो थोड़ी मदद तो करने दीजिए"।




वीणा  -   "भाभी आप तो सिर्फ देखिये सारा काम कैसे हो जाता है। हम लोग सारा काम खुद से ही करते हैं"।




सुमित की भाभी यह सुनकर मुस्कुरा दी l  खाना खाने के बाद बातों के मध्य सुमित के पिता प्रवेश जी ने वीणा पिता से कहा -  "भाई साहब हम लोग आज एक विशेष प्रयोजन से आपके यहां आये हैं। दुर्गा मां की पूजा है आज। मुझे लगा मैं जो चाहता हूं, मेरी मनोकामना पूरी हो जाएगी"।




  महेंद्र जी -  "भाई साहब ऐसी कौन सी मनोकामना है आपकी। आप इतने बड़े आदमी है आपकी हर मनोकामना ईश्वर पूरी करेंगे"। 




  प्रवेश जी  -  "ईश्वर तो सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। शायद वह हम पर भी मेहरबान हो जाए। मैं जो कहना चाहता हूं हिचक रहा हूं कहते। पता नहीं आपको जंचे या नहीं। फिर भी मेरे मन की बात मैं आपको बता दे रहा हूं। यदि आपको पसंद हो तब तो कोई बात नहीं लेकिन नहीं पसंद हो तो ना कहने के लिए आप स्वतंत्र हैं"।




  महेंद्र जी  -   "ऐसी क्या बात है आप कहें तो"। 




   प्रवेश जी  -   " हमें आपकी बिटिया वीणा सुमित के लिए बहुत पसंद है। हम आपकी बिटिया वीणा को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। यदि आपको यह रिश्ता पसंद हो,वीणा को पसंद हो सुमित तो हम रिश्तेदारी के बंधन में बंध जाएँ"।




  सुन कर आश्चर्यचकित रह गए वे। वीणा भी आश्चर्यचकित रह गई। उन लोगों ने क्या सोचा था और यह क्या बात हो रही है।

   प्रवेश जी  -  " तुम अच्छी तरह से सोच  लो बिटिया। हमारी ओर से कोई जबरदस्ती नहीं है। पसंद ना हो सुमित तो तुम ना कहने के लिए स्वतंत्र हो। दरअसल जब तुमसे पहली बार मिला था सुमित ट्रेन में तभी से तुम्हें बहुत पसंद करता है। और वहां से आने के बाद भी तुम्हारी बातें करते नहीं थक रहा है। रोज तुम्हारी बात एक बार जरूर करता है। इसलिये सोचा कि चलो तुम लोग से मिल लिया जाए और जब यहां मिले तो सचमुच मुझे भी लगा कि उसकी पसंद लाखों में एक है। हम ढूँढने जाते तो तुम्हारे जैसी लड़की शायद हमको कभी नहीं मिलती। लेकिन फिर भी मैं तुम्हें कहूँगा तुम अच्छी तरह सोच लो। अगर तुम्हें पसंद हो तो ठीक है। तुम ना करोगी तो हमें दुःख तो अवश्य होगा तुमसी बहु नहीं पाने का, परन्तु कोई एतराज नहीं होगा"।




   वीणा चुपचाप सर झुका कर बैठी रही।




   महेंद्र जी  -  "भाई साहब आपने तो इतनी बड़ी बात कह दी है। हमारे लिए तो खुशी की बात होगी। हम अपने को सौभाग्यशाली समझेंगे कि हमारी वीणा को आपके जैसा परिवार मिले। हम लोग तो आपके परिवार से रिश्ते के लिए कल्पना भी नहीं सकते थे। इतना ऊँचा परिवार है आपका और हम लोग कुछ भी नहीं कर पाएंगे। आप की बराबरी में कहीं नहीं आएंगे। पता नहीं सुमित जी ने क्या सोचकर वीणा को पसन्द किया, जबकि हमारे पास तो कुछ भी नहीं है।"




   महेंद्र जी  -  "आपके पास तो लक्ष्मी है वीणा जैसी बिटिया के रूप में। आपने जो संस्कार और शिक्षा इन्हें दिया है वह सबमें नहीं मिलता। हमें ऐसी ही बहू चाहिए। आज हम लोग चलते हैं आप लोग अच्छी तरह सोच लीजिए और आपका जो फैसला होगा आप हमें बता दीजिएगा"।




उसके बाद वे लोग वहां से विदा हुए। काफी देर तक उन्हें विदा करने के बाद भी यह लोग आपस में इसी संबंध में बात करते रहे कि यह क्या बात हो गई। 




   महेंद्र जी -  "हमने क्या सोचा था और यह क्या हुआ बिटिया। हमने लगता है कि जरूर कभी मोती दान किये होंगे जो इनके जैसा परिवार खुद बढ़कर तुम्हारा हाथ मांगने आया है। पसंद है हमें तो यह रिश्ता; हमें सुमित बहुत अच्छा लगा। तुम लोगों ने जितनी बातें बतायी है और आज भी जो उनका व्यव्हार देखा; इससे लगा लड़का बहुत शालीन है। तभी तो अकेले नहीं आ कर अपने माता-पिता के साथ आया। अपने पिता के द्वारा शादी की बात करवाई अभिभावकों के माध्यम से। इससे तो लगता है कि लड़का बहुत अच्छा है,तो क्यों न हम लोग रिश्ता मान लें। तुम भी B.Ed कर ही रही हो शादी कर देते हैं उसके बाद तुम भी नौकरी करोगे"।




वीणा -  "मैं मानती हूं कि वे लोग बहुत अच्छे हैं, परिवार भीबहुत अच्छा है, इनमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन मैं B.Ed करने के पहले शादी नहीं करना चाहती मैं चाहती हूं पहले अपने पांव पर खड़ी हो जाऊँ उसके बाद शादी करुं"।




मां  -  " तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत होगी। इतना बड़ा परिवार है, उनका अपना व्यवसाय है। तुमको कुछ करना ही होगा तो अपने घर का व्यवसाय ही संभालना"।




  वीणा -  " माँ मैं अपने पाँव पर खड़ी होना चाहती हूं। मैं सिर्फ वहां सजावटी गुड़िया बनकर नहीं रहना चाहती। रही बात घर संभालने की तो मैं यहां भी तो तुम्हारी मदद करती हूं ना, वहां भी मैं करूंगी।



सबकी देखभाल भी करूंगी। मुझे शादी से इंकार नहीं है माँ लेकिन जब तक अपने पांव पर खड़ी नहीं हो जाऊँ,नौकरी नहीं हो जाए; तब तक मैं शादी नहीं करूंगी। पापा आप उनसे कहें। अगर उन्हें मेरी यह बात मंजूर होगी तब तो ठीक है नहीं तो मेरी तरफ से "न" होगी।"


  


                                   क्रमशः

           निर्मला कर्ण

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3 Comments

Alka jain

04-Jun-2023 12:52 PM

V nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 06:58 AM

Nice

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